भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह ऋतु मधुमास की / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 30 जनवरी 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूट आईं नई कोंपल
देख ऋतु मधुमास की

छा गई है
फूल, फल आनंद की खुशबू
गुनगुनाती धूप भी अब
कर रही जादू
कूकने है लगी कोयल
देख ऋतु मधुमास की

खेत में फिर
दलहनी की फसल कैलाई
और झूमे पात-डाली
मस्त पुरवाई
हर तरफ हो रही हलचल
देख ऋतु मधुमास की

महक महुए की
करें मन को नशीला-सा
हो गया है
प्रेममय मौसम हठीला सा
प्रिय-मिलन को हृदय विह्वल
देख ऋतु मधुमास की