भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे आस-पास / नोमान शौक़
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 22 सितम्बर 2008 का अवतरण (203.200.107.17 (वार्ता) के अवतरण 30064 को पूर्ववत किया)
टूटी हुई बाँसुरी
सूखे होंठों पर धरी है
बरसों से
टूटा हुआ गुलदान
पड़ा है मेरे सामने
फूलों की बिखरी पंखुड़ियाँ भी
नहीं चुनी जा सकतीं
टूटी हुई व्हील चेयर पर बैठकर
बल्कि
और बढ़ती जा रही है
टूटे हुए पाँव की पीड़ा।
मेरे आसपास
कुछ भी वैसा नहीं
जैसा होना चाहिए !