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अपनी रोशनी पर / कविता भट्ट

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स्ट्रीट लाइट!
अपनी रोशनी पर-
इतना मत अकड़;
क्योंकि , मैं उस नदी के गाँव से हूँ;
जो तुझे रोशन करने की खातिर-
कैद कर दी गयी-
सीमेंट की दीवारों में
और उसने उफ्फ तक नहीं की।