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अँजुरी भर फूल / अजित कुमार
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अँजुरी भर फूल
मुझमें जो भाव उगे-उमड़े,
वे होंगे कुछ;
तुमने देखे केवल—
अँजुरी भर फूल ।
तुम कितनी अविदित हो,
मैं कैसा अस्थिर हूँ;
निश्चित हैं केवल ये—
अँजुरी भर फूल ।
मन तो कुटिल है, और
तन । कितना दूषित है;
तुमको समर्पित ये—
अँजुरी भर फूल ।