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उजाला तुम्हीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
मैं सिर्फ दीप
तुम्हीं बाती व नेह
उजाला तुम्हीं।
2
उष्ण चुम्बन
बूँद- बूँद दुःख पी
तृप्त हो मन।
3
हाथ तुम्हारे
लिख दूँ सर्व सुख
वश जो चले।