भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ रहा है पेट / रामकुमार कृषक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 6 अगस्त 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ रहा है पेट
पट्टियाँ कितना और कसें
टँगी हुई आँखें अम्बर में
कितना और धँसे !

हड्डी - हड्डी देह
देह को ईंधन हुई
हवा
हाथों के पौरुख में ख़ाली
टूटा हुआ तवा,

हर तनाव भीतरला बाहर
उभरी हुई नसें !

मुट्ठी - भर
हो चला इरादा
गज पर गाज गिरी
घाटी घूम पहाड़ी चढ़ते
मुचिया रही धुरी,

कुछ ख़िज़ाब - सा भी तलाशतीं
भीगी हुई मसें !

21 सितम्बर 1975