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शहतूत के पेड़ / अश्वघोष
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:05, 17 जुलाई 2023 का अवतरण
कल करेंगे
जो भी करना
आज तो, बस, धूप से बातें करें ।
एक मुद्द्त बाद तो
यह लाजवन्ती
द्वार आई है,
प्यार में डूबे हुए
कुछ गुनगुने सम्वाद
अपने साथ लाई है ।
क्या कहेगा कल ज़माना
सोचकर हम क्यों डरें ।
क्या कभी भी एक क्षण
अपनी ख़ुशी से
भोग पाते हैं,
रोटियों के
व्याकरण में ही
समूचा दिन गँवाते हैं ।
इस नियोजित भूमिका को
कल तलक सारांश के घर में धरें ।