भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुहरे की दीवार खड़ी है / कात्यायनी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण
कुहरे की दीवार खड़ी है!
इसके पीछे जीवन कुड़कुड़
किए जा रहा मुर्गी जैसा ।
तगड़ी-सी इक बांग लगाओ,
जाड़ा दूर भगाओ,
जगत जगाओ ।
साँसों से ही गर्मी फूँको,
किरणों को साहस दो थोड़ा
कुहरे की दीवार हटाओ ।
रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003