भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उड़ चुकी है / तेजी ग्रोवर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 19 नवम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उड़ चुकी है
गिरे हुए तारे की धूल

पृथ्वी की ओर
करुणा के क्षण वह निकला होगा सुबह के आसमान से

गेहूँ घास पर
ईश्वर-सा तारल्य उतर रहा था

'देहतारा'
'भोरतारा'
ईंधन चुनती हुई लड़कियों मे कहा

'मेरे वन में तेरी मृत्यु मेरी ही मृत्यु है'