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दोहे / यश मालवीय

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कौन चतुर चालाक है और कौन मासूम,
सब कह देता आपका, अपना ड्राइंगरूम।।

साँसों का चुकने लगा, खाता और हिसाब,
पढी न पूरी जंदगी, पढते रहे किताब।।

पढते अपना नाम ही, लिखते अपना नाम,
हम अपने ही इस कदर, अब हो गए गुलाम।।

सुबह नहीं अपनी रही, रही न अपनी शाम,
ओवरटाइम जो मिला, किया काम, बस काम।।

सुबह सुबह माथा गरम, कंधे पर वैताल,
लहर उठाए किस तरह, उम्मीदों का ताल।।

थकने की क्या बात हो, जीना हमें जहान,
कंधे पर सामान है, पाँव पाँव प्रस्थान।।

दिल में है दरियादिली, पर खाली है जेब,
बिन घुँघरू कैसे बजे, खुशियों की पाजेब।।

मरहम पट्टी संग रखें, संग रखें रूमाल,
सपने ही अब आपको, करने लगे हलाल।।

है उडान की जद मगर, बिछा हुआ है जाल,
कैसे कोई हल करे, इतना बडा सवाल।।

झुलसा अपनी आग में, राहत का सामान,
बादल भागे छोडकर, जलता हुआ मकान।।

आने को आती नहीं, कभी साँच को आँच,
सपने है ताजा लहू, सपने टूटा काँच।।