भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ थे तुम / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल जब
घाटी में बहता पानी
इन तरल चट्टानों पर
जल तरंग बजा रहा था
तुम कहाँ थे?

कहाँ थे तुम
जब वर्षा के बाद
इन्द्र धनुष से झरती सुगंध
चुपके से आकर
इन महंदी-रची हथेलियों में
गई थी छिप

कल जब
इस दहकते वन में
ब्रास के फूलों लदे पेड़
बिखेर रहे थे
अपनी सुर्ख़ ख़ामोशियाँ
तुम कहाँ थे?

आज जब
नदी की तरल आँख में
काँच के टुकड़े-सा
चुभ गया मौन
आन पहुँचे तुम!

आये हो तो बैठो तथागत!
झेल पाओगे क्या
सूखती झील में
बुद-बुद बहते
मवाद की दुर्गन्ध?