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रात की तरह मृत्यु / अनीता वर्मा

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रात की तरह
मृत्यु की
परछाईं नहीं होती

वह सिर्फ़
हमें आग़ोश में
ले लेती है

हम छटपटाते हैं
सिर धुनते हुए
वापस लौटने को तत्पर

सुरंग के
दूसरे छोर पर
दिखता है एक हल्का प्रकाश
कुछ प्रिय चेहरे गड्ड-मड्ड

हमें
वहीं जाना होता है
बार बार
उन चेहरों का हिस्सा बनने।