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कभी यूँ भी तो हो / सौरभ
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कभी यूँ भी तो हो
मैं घूमने निकलूँ
और सड़क में कोई न हो
फूल ही फूल खिले हों
और काँटा एक न हो
कभी यूँ भी तो हो
सब हों सँतुष्ट
एक भी स्ट्राइक न हो
कभी यूँ भी तो हो
सब अपने काम में मग्न रहें
सरकारी अफसर टाइम पर पहुँचे ऑफिस
कोई दंगा न हो
कभी यूँ भी तो हो
धूप निकली हो
और गर्मी न हो
कभी यूँ भी तो हो
नेता करें देश की सेवा
अलग से कोई समाजसेवक न हो
कभी यूँ भी तो हो
नेता करें देश की सेवा
भगवान पुकारता फिर रहा हो
और कोई भक्त न हो
सभी लगा रहे हो आवाजें
कोई सुनने वाला न हो
गरज कर चले जाएँ बादल
और बरसात न हो
कभी यूँ भी तो हो
भगवान बाँटता फिरे सौगातें
और लेने वाला कोई न हो।