भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उड़ि गुलाल घूँघर भई / बिहारी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 29 दिसम्बर 2014 का अवतरण
उड़ि गुलाल घूँघर भई तनि रह्यो लाल बितान।
चौरी चारु निकुंजनमें ब्याह फाग सुखदान॥
फूलनके सिर सेहरा, फाग रंग रँगे बेस।
भाँवरहीमें दौड़ते, लै गति सुलभ सुदेस॥
भीण्यो केसर रंगसूँ लगे अरुन पट पीत।
डालै चाँचा चौकमें गहि बहियाँ दोउ मीत॥
रच्यौ रँगीली रैनमें, होरीके बिच ब्याह।
बनी बिहारन रसमयी रसिक बिहारी नाह॥