भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सैसव जौवन दुहु मिल गेल / विद्यापति
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 18 सितम्बर 2013 का अवतरण
सैसव जौवन दुहु मिल गेल।
श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहु-नहु हास।
धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करय सिंगार।
सखि पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरजन उरज हेरत कत बेरि।
बिहुँसय अपन पयोधर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग।
दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव देखल अपरूब बाला।
सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि।
दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।