भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:15, 5 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें

थक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें, तो नाचार<ref>जिनका बस ना चले</ref> क्या करें

क्या शम्अ़ के नहीं है हवाख़्वाह<ref>शुभचिंतक</ref> अहल-ए-बज़्म<ref>महफिल वाले</ref>
हो ग़म ही जांगुदाज़<ref>जान घुलाने वाला</ref> तो ग़मख़्वार क्या करें

शब्दार्थ
<references/>