भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेटी का आगमन-1 / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:47, 4 मार्च 2010 का अवतरण
जैसे अनन्त पतझड़ के बाद
पहला-पहला फूल खिला हो
और किसी निर्जन पहाड़ से
फूट पड़ा हो कोई झरना
जैसे वसुंधरा आलोकित करता
सूरज उदित हुआ हो
ताम्र वनों में गूँज उठा हो
चिड़ियों का कलरव
जैसे चमक उठा हो इन्द्रधनुष
अम्बर को सतरंगी करता
जैसे किसी अजान गंध से महक उठी हो
कोई धूसर सांझ
ऐसे आई हो तुम
मेरे जीवन में