भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क़िताब / इला प्रसाद

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:22, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कम्प्यूटर के सामने बैठकर
पत्र, पत्रिकाएँ पढ़ते
सीधे- कुबड़े, बैठे- बैठे
जब अकड़ जाती है देह
दुखने लगती है गर्दन
धुँधलाने लगते हैं शब्द
और गड्ड्मड्ड होने लगती हैं तस्वीरें
तो बहुत जरूरी लगता है
किताब का होना ।

किताब,
जिसे औंधे - लेटे
दीवारों से पीठ टिकाए
कभी भी, कहीं भी
गोदी में लेकर
पढ़ा जा सकता था
सीएडी (कम्प्यूटर एडेड डिसीज़) के तमाम खतरो को
नकारते हुए ।

किताब जो जाने कब
चुपके से
गायब हो गई
मेरी दुनिया से
बहुत याद आई आज !