भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देख जिऊँ माई नयन रँगीलो / कृष्णदास

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 5 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख जिऊँ माई नयन रँगीलो।
लै चल सखी री तेरे पायन लागौं, गोबर्धन धर छैल छबीलो॥
नव रंग नवल, नवल गुण नागर, नवल रूप नव भाँत नवीलो।
रस में रसिक रसिकनी भौहँन, रसमय बचन रसाल रसीलो॥
सुंदर सुभग सुभगता सीमा, सुभ सुदेस सौभाग्य सुसीलो।
'कृष्णदास प्रभु रसिक मुकुट मणि, सुभग चरित रिपुदमन हठीलो॥