भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर सुबह / कन्हैयालाल नंदन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:47, 1 जुलाई 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए
मैं परिंदा हूँ उड़ने को पर चाहिए

मैंने माँगी दुआएँ, दुआएँ मिली
उन दुआओं का मुझ पे असर चाहिए

जिसमें रहकर सुकूँ से गुज़ारा करूँ
मुझको एहसास का ऐसा घर चाहिए

ज़िंदगी चाहिए मुझको मानी भरी
चाहे कितनी भी हो मुख़्तसर चाहिए

लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी
शानो-शौकत का सामाँ मगर चाहिए

जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े
तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए