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सुना करो मेरी जाँ / कैफ़ी आज़मी
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					सुना करो मेरी जाँ इन से उन से अफ़साने 
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने
 
यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालों 
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने 
मेरी जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गये लोग 
सुना है बंद किये जा रहे हैं बुत-ख़ाने 
जहाँ से पिछले पहर कोई तश्ना-काम उठा 
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने 
बहार आये तो मेरा सलाम कह देना 
मुझे तो आज तलब कर लिया है सेहरा ने 
सिवा है हुक़्म कि "कैफ़ी" को संगसार करो 
मसीहा बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने 
	
	