भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख भी सुख का बन्धु बना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
दुख भी सुख का बन्धु बना
पहले की बदली रचना।
परम प्रेयसी आज श्रेयसी,
भीति अचानक गीति गेय की,
हेय हुई जो उपादेय थी,
कठिन, कमल-कोमल वचना।
ऊँचा स्तर नीचे आया है,
तरु के तल फैली छाया है,
ऊपर उपवन फल लाया है,
छल से छुटकर मन अपना।
रचनाकाल=7 दिसम्बर, 1952