भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक ही ग़म / निदा फ़ाज़ली
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 11 अक्टूबर 2020 का अवतरण
अगर कब्रिस्तान में
अलग-अलग
कत्बे न हों
तो हर कब्र में
एक ही ग़म सोया हुआ होता है
-किसी माँ का बेटा
किसी भाई की बहन
किसी आशिक की महबूबा
तुम-
किसी कब्र पर भी
फ़ातिहा पढ़ के चले आओ