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सब जैसा का तैसा / कैलाश गौतम
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लेखक: कैलाश गौतम
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कुछ भी बदला नहीं फलाने!
सब जैसा का तैसा है
सब कुछ पूछो, यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है।
क्या सचिवालय क्या न्यायालय
सबका वही रवैया है
बाबू बड़ा न भैय्या प्यारे
सबसे बड़ा रुपैया है
पब्लिक जैसे हरी फसल है
शासन भूखा भैंसा है।
मंत्री के पी. ए. का नक्शा
मंत्री से भी हाई है
बिना कमीशन काम न होता
उसकी यही कमाई है
रुक जाता है, कहकर फौरन
`देखो भाई ऐसा है'।
मन माफिक सुविधायें पाते
हैं अपराधी जेलों में
कागज पर जेलों में रहते
खेल दिखाते मेलों में
जैसे रोज चढ़ावा चढ़ता
इन पर चढ़ता पैसा है।