भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:33, 2 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा,
तुम सन ज्ञान कहा जानि कहिबौ करैं ।
कहै रतनाकर पै लौकिक लगाव मानि,
परम अलौकिक की थाह थहिबौ करैं ॥
असत असार या पसार मैं हमारी जान,
जन भरमाये सदा ऐसैं रहिबौ करैं ।
जागत और पागत अनेक परपंचनि मैं,
जैसें सपने मैं अपने कौं लहिबौ करैं ॥16॥