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ज़िन्दगी यूँ ही चली / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
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ज़िन्दगी यूँ ही चली यूँ ही चली मीलो तक
चन्दनी चार कदम, धूप चली मीलों तक
प्यार का दाँव अजब दाँव है जिसमे अक्सर
कत्ल होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक
घर से निकला तो चली साथ मे बिटिया भी हँसी
खुशबू इन से ही जी रही नन्ही कली
मन के आँचल मे जो सिमटी तो घुमड़ कर बरसी
मेरी पलको पे जो एक पीर पली मीलों तक