लेखक: भवानीप्रसाद मिश्र
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मैं तैयार नहीं था सफर के लिए
याने सिर्फ चड्डी पहिने था और बनियान
एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था
और वह कोई ऐसा बमबारी
भूचाल या
आसमानी सुलतानी का दिन नहीं था
कि भाग रहे हों सड़क पर जैसे तैसे सब
इसलिए मैंने थोड़ा वक्त चाहा
कि कपड़े बदल लूँ
रख लूँ साथा में थोड़ा तोशा
मगर जो सफर पर चल पड़ने का
आग्रह लेकर आया था
उसने मुझे वक्त नहीं दिया
और हाथ पकड़कर मेरा
लिए जा रहा है वह
जाने किस लम्बी सफर पर
कितने लोगों के बीच से
और मैं शरमा रहा हूँ
कि सफर की तैयारी से
नहीं निकल पाया
सिर्फ चड्डी पहने हूँ
और बनियान !