भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गहरे-गहरे-से पदचिन्ह / माहेश्वर तिवारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:50, 23 अगस्त 2010 का अवतरण ("गहरे-गहरे-से पदचिन्ह / माहेश्वर तिवारी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गहरे-गहरे से पदचिह्न ।

घर की दहलीजों के नीचे,
गहरे-गहरे से पदचिह्न ।
कल तक जो थे मेरे साथ
दिखते उनसे बिलकुल भिन्न ।
गहरे-गहरे से पदचिह्न ।

ताज़े, पर अपरिचित अनाम
अभी छोड़ गई इन्हें शाम
जाने क्यों हो करके खिन्न ।
गहरे-गहरे से पदचिह्न ।

कोई चौराहे तक जाए
और इन्हें वहीं छोड़ आए
अओसा न हो कल के दिन ।
गहरे-गहरे से पदचिह्न ।