भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँध लिए अँजुरी में / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 23 अगस्त 2010 का अवतरण ("बाँध लिए अँजुरी में / रवीन्द्र भ्रमर" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
बाँध लिए अँजुरी में-
जूही के फूल ।
मधुर गंध,
मन की हर एक गली महक गई,
सुखद परस,
रग-रग में चिनगी-सी दहक गई
रोम-रोम उग आए-
साधों के शूल ।
जोन्हा का जादू
जिन पंखुरियों था फैला,
छू गंदे हाथों-
मैंने उन्हें किया मैला,
हाथ काट लो-
मेरे...
सज़ा है क़बूल ।
आह !
हो गई मुझसे एक बड़ी भूल ।
अँजुरी में बाँध लिए जूही के फूल ।