बहुत बेबस था मन मेरा
पर चाल थी मेरी हल्की
मैं दस्ताना बदल रही थी
घबराहट थी कल की
मुझे लगा- सीढ़ियाँ हैं ज़्यादा
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
आ, आ जा ! मौत हसीन !
मैं चली थी धोखा देने
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को
यह गीत था अन्तिम क्षण का
देखा मैंने उस घर को
वहाँ शयनकक्ष था रोशन
उस फीके पीले निर्झर को
मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय