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अन्तिम क्षण का गीत / आन्ना अख़्मातवा

बहुत बेबस था मन मेरा
पर चाल थी मेरी हल्की
मैं दस्ताना बदल रही थी
घबराहट थी कल की

मुझे लगा- सीढ़ियाँ हैं ज़्यादा
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
आ, आ जा ! मौत हसीन !

मैं चली थी धोखा देने
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को

यह गीत था अन्तिम क्षण का
देखा मैंने उस घर को
वहाँ शयनकक्ष था रोशन
उस फीके पीले निर्झर को

मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय