भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुपारी / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
सरोते रे बीच फंसी सुपारी
बोले कटक
अर दो फाड़ हुय जावै
जित्ता कटक बोलै
बित्ता अंस बणावै
लोग केवै सुपारी काटी नीं जावै
तद ताणी
मजो नीं आवै-खावण रो
आखी सुपारी तो पूजण रे काम आवै
पूजायां बाद
कुंकु-मोळी सागै पधरा दी जावै
स्वाद समझणिया सरोता राखै
बोलावे कटक
अर थूक सागै, जीभ माथै
रपटावंता रेवै सुपारी ने
सुपारी बापड़ी या सुभागी
जे जूण में आई है-लकड़ां री
अर सुभाव है-स्वाद देवणों
तो ओळभो अर शबासी कैने