भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतियास जीवै है / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपां में
इतियास जीवै है।

दादी बतांवता
ब्याह पछै तीजै दिन
उणरी सासू
हाथ में झलायो
पाणी रो गडियो
मुट्ठी भर दी
दाणां सूं
गीतां री गूंज बिचाळै
सिंचायो पैली-पोत
कीड़ीनगरो।

गांव रै उतरादै छेड़ै
पीरजी री दरगाह खंनै
बसेड़ो कीड़ीनगरो
गांव जित्तो ई बूढ़ो हुवैला।

गोडा जबाब दियां पछै
दादी सूंप्यो गडियो
म्हारी मा रै हाथां
अर अटूट राखी रीत।

गांव रै अतीत री
गीरबाजोग ओळखांण
कीड़ीनगरै
बगत रा एनाण
सांभ राख्या है
जिणरै मारफत
जीवै है इतिहास।