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म्हारी कविता 3 / रामस्वरूप किसान

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म्है कवि कोनी बावळी !
कारीगर हूं
थारी-म्हारी प्रीत रौ
मै‘ल चिणूं

इण बीच
काट-छांट में
जकौं ई कीं
झड़ै
उण नै ई
कविता गिणूं।