भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात किस तरह यहाँ हमने बितायी होगी / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 15 जून 2011 का अवतरण
रात किस तरह यहाँ हमने बिताई होगी
बात यह आपके जी में भी तो आई होगी!
तड़पी होगी कोई बिजली भी तो उस दिल में कभी!
कोई बरसात उन आँखों में भी तो छायी होगी!
हम कहाँ और कहाँ आपसे मिलने का ख्याल!
किसी दुश्मन ने ये बेपर की उडायी होगी
अपनी नागिन-सी लटें खोल दी होंगी उसने
हम न होंगे तो क़यामत नहीं आयी होगी
रंग चहरे का तेरे अब भी ये कहता है, गुलाब!
रात भर आँख सितारों से लड़ायी होगी