भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 7 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपन...)
तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
वो दूर हो तो बजा तर्क-ए-दोस्ती का ख़याल
वो सामने हो तो कब इख़्तियार अपना है
ज़माने भर के दुखों को लगा लिया दिल से
इस आसरे पे के इक ग़मगुसार अपना है
"फ़राज़" राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे
वो जिस के हाथ से सीनाफ़िग़ार अपना है