भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तब मैं / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:34, 19 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
तब मैं
पेड़ और पहाड़ से भी
अधिक ऊँचा
अंतरिक्ष तक पहुँच जाता हूँ
अपना घर अपना जग
सिर पर उठाए अपने
खड़ा हो जाता हूँ दृढ़
कि आया महासागर
घुटनों तक ही पहुँच पाएगा मेरे।
रचनाकाल: १८-०९-१९७६, मद्रास