Last modified on 6 मार्च 2011, at 14:49

शहर : एक बिम्ब / सांवर दइया

बडै शहरां रै
संकड़ै कमरां में
मिनखां कनै
     बैठा
       सूता
          ऊभा

मिनख
     मिनख
          मिनख

जाणै
दाब-दाब र भरी हुवै
जूनी अर अकारण फाइलां
               बोरां में !


कविता का हिंदी अनुवाद

बड़े शहर में
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
बैठे
सोए
खड़े
आदमी
आदमी
आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
बोरों में !

अनुवाद : नीरज दइया