भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्ग रचना / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 7 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''स्वर्ग रचना'''…)
स्वर्ग रचना
(नवीन जीवन दर्शन)
म्ुाझको यह विष पी पी कर
अमृत करना ही होगा।
इसी नरक को शुचि कर
मुझको, स्वर्ग विरचना ही होगा
भूली भटकी हुयी
नदी को भी सागर के पद पर जाकर
अपना सारा जीवन
अर्पित करना ही होगा
मेरे उर का सोना
जो है दबा हुआ मिट्टी में
उसे निकल बाहर ज्वाला में
पिघल चमकना ही होगा
मुझको यह विष पी पी कर
अमृत करना ही होगा
(स्वर्ग रचना कविता का अंश)