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ज़ुर्म / मनोहर बाथम

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कामरेड हमीद के लिए

ईद के दिन हमारी चौकी पर
पीछे के दरवाज़े से
उसने सिवईयाँ भेजीं चुपचाप
किसी को न बताने की शर्त थी

मेरी दीपावली की मिठाई भी शायद
इस तरह से जाती

वो हो गया रुख़सत दुनिया से
मेरे साथ ईद मनाने के ज़ुर्म में