भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात यदि श्याम नहीं आये थे / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:07, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)
रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!
गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर
किसने फी वे रास मनोहर
वन में रचवाये थे!
शंका क्यों रहने दें मन में!
चलकर सखि! देखें मधुवन में
पथ के काँटों ने क्षण-क्षण में
आँचल उलझाये थे
मुझे याद है हरि ने छिपकर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझपर
क्यों अंगों में सिहर रही भर
भेंट न यदि पाये थे!
रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!