भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ / प्रभाकर माचवे

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 21 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभाकर माचवे }} ईश्वर का वरदान है माँ हम बच्चों की जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईश्वर का वरदान है माँ

हम बच्चों की जान है माँ

मेरी नींदों का सपना माँ

तुम बिन कौन है अपना माँ

तुमसे सीखा पढ़ना माँ

मुश्किल कामों से लडना माँ

बुरे कामों में डाँटती माँ

अच्छे कामों में सराहती माँ

कभी मित्र बन जाती माँ

कभी शिक्षक बन जाती माँ

मेरे खाने का स्वाद है माँ

सब कुछ तेरे बाद है माँ

बीमार पडूँ तो दवा है माँ

भेदभाव ना कभी करे माँ

वर्षा में छतरी मेरी माँ

धूप में लाए छाँव मेरी माँ

कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ

ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ

ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ

है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ