Last modified on 15 मार्च 2011, at 22:09

देश हमारा / मनमोहन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 15 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह=जिल्लत की रोटी / मनमोहन }} <poem> देश ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देश हमारा कितना प्यारा
बुश की भी आँखों का तारा
 
डंडा उनका मूँछें अपनी
कैसा अच्छा मिला सहारा
 
मूँछें ऊँची रहें हमारी
डंडा ऊँचा रहे तुम्हारा
 
ना फिर कोई आँख उठाए
ना फिर कोई आफत आए
 
बम से अपने बच्चे खेलें
दुनिया को हाथों में लेलें
 
भूख गरीबी और बेकारी
ख़ाली -पीली बातें सारी
 
देश-वेश और जनता-वनता
इन सबसे कुछ काम न बनता
 
ज्यों-ज्यों बिजिनिस को चमकाएँ
महाशक्ति हम बनते जाएँ
 
हम ही क्यों अमरीका जाएँ
अमरीका को भारत लाएँ
 
झुमका ,घुँघटा,कंगना,बिंदिया
नबर वन हो अपना इंडिया
 
हाईलिविंग एण्ड सिम्पिल थिंकिंग
यही है अपना मोटो डार्लिंग
 
मुसलमान को दूर भगाएँ
कम्युनिस्ट से छुट्टी पाएँ
 
अच्छे हिन्दू बस बच जाएँ
बाकी सारे भाड़ में जाएँ ।