भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महात्मा गांधी / साग़र निज़ामी
Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 16 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साग़र निज़ामी |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> कैसा संत हमारा…)
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था जग सारा ।
आख़िर में जब देखा साधो वह जीता जग हारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
सच्चाई के नूर से उस के मन में था उजियारा ।
बातिन में शक्ती ही शक्ती ज़ाहर में बेचारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
बूढ़ा था या नए जनम में बंसी का मतवारा ।
मोहन नाम सही था पर साधो रूप वही था सारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
भारत के आकाश पे वो है एक चमकता तारा ।
सचमुच ज्ञानी, सचमुच मोहन सचमुच प्यारा-प्यारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!