भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबसे पहले / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:34, 24 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे पहले
उन्हें आरती का अवसर दो

जो सपनों की थाती के
हक़दार सही हैं
यानी बच्चे
निपट मूढ़मति
जो कहलाते
यानी जो हैं मन के सच्चे

जिनकी है
झोली खाली- उनको यह वर दो

रहा हाशिए पर जो
सारी उम्र
उसी का पहला हक़ है
उस कुम्हार का
जिसने सिरजा
हाँ, पूजा का यह दीपक है

उसका दीया
उसके हाथों में धर दो

जो सीपी को
शंख बनाते
वाही पुजारी हैं मंदिर के
देव उसी
भोले किशोर के
जिसके पाँव सहज हैं थिरके

सौंप उन्हें ही
भोले भंडारी का घर दो