भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अरण्यकांड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 1
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 5 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(11).
रागसोरठ
जबहि सिय-सुधि सब सुरनि सुनाई |
भए सुनि सजग, बिरहसरि पैरत थके थाह-सी पाई ||
कसि तूनीर-तीर धनु-धर-धुर धीर बीर दोउ भाई |
पञ्चबटी-गोदहि प्रनाम करि, कुटी दाहिनी लाई ||
चले बूझत बन-बेलि-बिटप, खग-मृग, अलि-अवलि सुहाई |
प्रभुकी दसा सो समौ कहिबेको कबि उर आह न आई ||
रटनि अकनि पहिचानि गीध फिरे करुनामय रघुराई |
तुलसी रामहि प्रिया बिसरि गई, सुमिरि सनेह-सगाई ||