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पथिक गोरे साँवरे सुठि लोने/ तुलसीदास
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(23) पथिक गोरे-साँवरे सुठि लोने | सङ्ग सुतिय, जाके तनुतें लही है द्युति सोन सरोरुह सोने || बय किसोर-सरि-पार मनोहर बयस-सिरोमनि होने | सोभा-सुधा आलि अँचवहु करि नयन मञ्जु मृदु दोने || हेरत हृदय हरत, नहि फेरत चारु बिलोचन कोने | तुलसी प्रभु किधौं प्रभुको प्रेम पढ़े प्रगट कपट बिनु टोने ||