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कहाँ पर हमको उम्मीदों ने लाके छोड़ दिया / गुलाब खंडेलवाल

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कहाँ पर हमको उम्मीदों ने लाके छोड़ दिया
अँधेरी रात में दीपक जलाके छोड़ दिया

उसी को सँजते रहे हैं हम अपनी ग़ज़लों में
था जिसने साथ बहाना बना के छोड़ दिया

फिर उस तरह से कभी चाँदनी सँवर न सकी
किसी ने दो घड़ी मन में बसा के छोड़ दिया

अभी तो हमने लगाया था डायरी को हाथ
लजाते देख उन्हें मुस्कुरा के छोड़ दिया

छलकता और ही उनपर है आज प्यार का रंग
किसी ने दूध में केसर मिलाके छोड़ दिया

भले ही प्यार ने हमको बना दिया था गुलाब
उन्होंने आँख का काँटा बनाके छोड़ दिया