भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ आ गए चलके हम धीरे-धीरे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 15 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{KKGlobal}}


कहाँ आ गए चलके हम धीरे-धीरे
कि रुकने लगे हैं क़दम धीरे-धीरे

जो हल्की-सी दिल में कसक प्यार की थी
बनी ज़िन्दगी भर का ग़म धीरे-धीरे

कभी कोई मंजिल भी मिलकर रहेगी
बढाता चल, ऐ दिल! क़दम धीरे-धीरे

थीं गुलज़ार ये बस्तियां जिनके दम से
गए वे कहाँ बेरहम धीरे-धीरे!

कहाँ एक दीवाना था जो शहर में!
हुई उसकी चर्चा भी कम धीरे-धीरे

गुलाब एक नाचीज़-सी चीज़ थे पर
गजब ढा रही है क़लम धीरे-धीरे