भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:16, 15 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता!
जहां पर जिन्दगी है, मै वहीं होता तो क्या होता!
बहुत से वक्त ऐसे भी कटे हैं जब कि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीँ होता तो क्या होता!
हुआ है दिल तो घायल बेरुखी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता!
गुलाब! अच्छे हैं काँटें भी जो सीने से लगाए हैं
सहारा यह भी जीने का नहीँ होता तो क्या होता!