भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई हमें सताये, सताता ही जाये तो / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:52, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= सौ गुलाब खिले / गुलाब खं…)
कोई हमें सताए, सताता ही जाए तो
हम क्या करें जो मौत भी आकर न आये तो!
झूठा है प्यार, उनमें जो रंगत नहीं आये
कोई हमारी आँखों से आँखें मिलाये तो!
अब और कुछ बने न बने, खुश हैं हम कि आज
बातें हमारी सुनके ही वे मुस्कुराए तो
माना कि आज रूप ने परदा उठा दिया
हम क्या करें नज़र ही अगर उठ न पाये तो!
यादों पे कल हमारी चढायेंगे फूल वे
उनकी बला से जाए अगर जान जाए तो
देखें ग़ज़ल में रंग जमाता है यहाँ कौन
कोई ज़रा गुलाब-सी खुशबू उडाये तो!